Jagjit Singh: पहली बार स्टेज पर देख हंस पड़े थे लोग, फिर ऐसे बने ‘गजल सम्राट’, जानें दिलचस्प किस्से..

जगजीत सिंह ने 'होठों से छू लो तुम', 'कागज की कश्ती', 'होशवालों को खबर क्या', 'चुपके-चुपके रात दिन' जैसी तमाम गजलों से एक नया मुकाम हासिल किया। साल 2003 में जगजीत सिंह को भारत सरकार की तरफ से पद्मा भूषण अवार्ड से भी नवाजा गया।

चिट्ठी ना कोई संदेश, होश वालों को खबर क्या.. जैसी कई पॉपुलर गजलों से मशहूर हुए जगजीत सिंह को भला को नहीं जानता। अपनी रूहानी आवाज से लोगों का दिल जीतने वाले जगजीत सिंह भले ही आज इस दुनिया में नहीं हो लेकिन उनकी गजलें हमेशा ही लोगों के दिलों पर राज करती है। उनके निधन के इतने सालों बाद भी लोग उनकी गजलें सुनते हैं। बता दे, जगजीत सिंह ने कई भाषाओं में गाने गए। उनकी गायिकी देखने के बाद लोगों ने उन्हें ‘गजल सम्राट’ का टैग दिया था। आज जगजीत सिंह की 83वीं जयंती है। इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें..

रियाज से चिढ़ते थे जगजीत सिंह के दोस्त
8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में जन्मे जगजीत सिंह को बचपन से ही गाने का शौक था। ऐसे में उन्होंने उस्ताद जमाल खान और पंडित छगनलाल शर्मा से संगीत की शिक्षा ली। इसके बाद वह अपने आगे की पढ़ाई के लिए जालंधर पहुंच गए जहां पर उन्होंने डीएवी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इस दौरान जगजीत सिंह हॉस्टल में रहा करते थे लेकिन यहां पर जगजीत सिंह के साथ कोई भी रहना पसंद नहीं करता था। इसकी खास वजह यह थी कि जगदीश सिंह सुबह 5:00 बजे उठकर रियाज करते थे जिससे लोग चिढ़ जाते थे। हालाँकि जगजीत सिंह ने गाने के प्रति अपना रुझान नहीं छोड़ा और वह हमेशा ही रियाज करते रहते थे।

पहली बार खूब हंसे थे लोग
इसी बीच जगजीत सिंह को अपने विश्वविद्यालय की तरफ से अंतर राज्य महाविद्यालय युवा उत्सव में गाने का मौका मिला। इस दौरान जब जगजीत सिंह को गाने का मौका मिला तो लोग उन्हें हंसने लगे। दरअसल, जब जगजीत सिंह को ‘पंजाब यूनिवर्सिटी का विद्यार्थी शास्त्री संगीत गाएगा’ ऐसा कहकर बुलाया गया तो लोग यहां पर हंसने लगे क्योंकि लोगों का मानना है कि पंजाब तो केवल भांगड़ा के लिए जाना जाता है।

इस दौरान जगजीत ने अलाप लेने शुरू किया तो लोगों ने हंसना शुरू कर दिया, लेकिन जगजीत सिंह निरंतर अपना गाना गाते रहे और फिर वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया। जगजीत सिंह की आवाज इतनी रुहानी थी कि लोग उन्हें देर तक सुनते रहे और जब उन्होंने अपनी प्रस्तुति खत्म की तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

यह पहला मौका था जब जगजीत सिंह को पहचान हासिल हुई थी। इसके बाद तो जगजीत सिंह ने ‘होठों से छू लो तुम’, ‘कागज की कश्ती’, ‘होशवालों को खबर क्या’, ‘चुपके-चुपके रात दिन’ जैसी तमाम गजलों से एक नया मुकाम हासिल किया। साल 2003 में जगजीत सिंह को भारत सरकार की तरफ से पद्मा भूषण अवार्ड से भी नवाजा गया। बता दे जगजीत सिंह ब्रेन हेमरेज के कारण इस दुनिया को अलविदा कह गए। हालांकि आज भी उनकी गजलें हमारे बीच जादू बिखेर रही है। उनके निधन के बाद साल 2014 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था।

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