फिल्मी परदे के शहंशाह Pradeep Kumar ज़िंदगी के आखिरी दौर में मुफ्लिस की तरह हुए थे रूख्सत

अभिनेता प्रदीप कुमार ने हिंदी सिनेमा में अधिकतर राजाओं व शहंशाहों की भूमिकाएं अदा की थी लेकिन बावजूद इसके उनकी ज़िदगी का आखिर दौर बेहद ही परेशानियों में बीता

Pradeep Kumar Birth Anniversary: हिंदी सिनेमा के शुरूआती दौर में भक्ती व राजा महाराजाओं के अलावा शहंशाहों के जीवन पर आधारित फिल्में बना करती थी। ऐसी फिल्मों में किरदार निभाने के लिए अभिनेता प्रदीप कुमार निर्माताओं की पहली पसंद बना था। 4  जनवरी 1925 को कलकत्ता अब कोलकाता में पैदा हुए प्रदीप कुमार का असली नाम शीतल बताबायल था। घर वालों से प्रदीप कुमार ने जब फिल्मों में काम करने की बात कही, तो घर वाले गुस्सा हो गए। प्रदीप कुमार ने घर वालों की नाराजगी की परवाह किए बगैर करीब 17 साल की उम्र में कैमरामैन सहायक के तौर पर अपनी पारी की शुरूआत की।  बाद में कुछ बंगाली फिल्मों में काम किया।  जब लोग प्रदीप कुमार को नोटिस करने लगे, तब प्रदीप कुमार बड़े स्टार का सपना लेकर मुंबई आ गए।

मुंबई में प्रदीप कुमार ने फिल्मिस्तान स्टूडियों में काम करना शुरू किया। यहां आनंदमठ,अनारकली और नागिन जैसी फिल्में रिलीज हुई। अभिनय का सिक्का चल निकला।  फिर एक दौर ऐसा भी आया। प्रदीप कुमार की एक साल में 10 फिल्में भी रिलीज हुई थी। प्रदीप कुमार ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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मधुबाला के साथ प्रदीप कुमार की आठ तो मीना कुमारी के साथ करीब सात फिल्में रिलीज हुई। प्रदीप कुमार के साथ उस दौर की हर अदाकारा बिना किसी परेशानी के काम कर लिया करते थी क्योकि प्रदीप कुमार हर किसी के साथ बहुत ही मीठा बोलते थे और सभी के साथ उनका व्यवहार काफी अच्छा था।

एक दौर तो ऐसा भी आया कि प्रदीप कुमार का करियर शोहरत की बुलंदी पर था। अपने दौर के हर बडे़ अभिनेता और अभिनेत्रियों के साथ प्रदीप कुमार ने काम किया। लेकिन करियर में एक वक्त ऐसा भी आया कि फिल्मी परदे का ये शहंशाह जिंदगी के आखिरी दौर में बड़े ही परेशानियों से दो चार हुआ। अपनों ने ही प्रदीप कुमार को रूसवा कर दिया। प्रदीप कुमार का अंत भी काफी दुखदाई रहा। ऐसा क्यों हुआ, इसका पता आज तक नहीं चल पाया है।

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