डायरेक्टर Neeraj Pathak कमांडो Madhusudan Surve के जीवनी पर बनाएंगे फिल्म !

Madhusudan Surve Biopic - बॉलीवुड के डायरेक्टर नीरज पाठक ने मधुसूदन सुर्वे की बायोपिक बनाने के राइट खरीद लिए हैं और हाल ही में उनके गाँव शिवतर (खेड़ डिस्ट्रिक्ट) में जाकर उनसे मिलकर फिल्म बनाने की घोषणा की। पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

Madhusudan Surve Biopic : मराठा शूरवीर योध्या , शौर्य चक्र से सम्मानित, और देश के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर देनेवाले भारत के सपूत पैरा कमांडो श्री मधुसूदन सुर्वे की जीवनी पर फ़िल्म बननेवाली हैं। बॉलीवुड के डायरेक्टर नीरज पाठक ने मधुसूदन सुर्वे (Madhusudan Surve) की बायोपिक बनाने के राइट खरीद लिए हैं और हाल ही में उनके गाँव शिवतर (खेड़ डिस्ट्रिक्ट) में जाकर उनसे मिलकर फिल्म बनाने की घोषणा की।

जी हाँ मराठा फ्रीडम फाइटर पर फिल्मी इतिहास में अद्भुत फिल्मे बनी जिसमे उनकी शौर्य गाथा को बड़े पर्दे पर जीवंत किया और अब मराठा पैरा कमांडो जिन्होंने देश के लिए 11 गोलियां खाई और अपना एक पैर तक गवा दिया उनके बलिदान और मातृप्रेम को सलामी देने का इससे बेहतर तरीका नही हो सकता।

लेखक-निर्माता-निर्देशक नीरज पाठक , इस युद्ध नायक के जीवन की अमरगाथा को दिखाने के लिए पूरी तरह से तैयार है, और पैरा कमांडो सुर्वे के गांव शिवतर में मेगा बायोपिक लॉन्च करने की घोषणा की , जो देशभक्ति में डूबा हुआ एक गांव है।

जाबाज सिपाही मधुसूदन सुर्वे (Madhusudan Surve) की कहानी सुन डायरेक्टर नीरज पाठक के रोंगटे खड़े हो गए! मराठा युद्ध के नायक मधुसूदन सुर्वे (Madhusudan Surve ) जी को शॉल देकर सम्मानित करने का फैसला करते हुए भावुक नीरज पाठक कहते हैं, ”भारत तब तक आजाद रहेगा, जब तक यहां मधुसूदन सुर्वे जैसे वीरों का घर है.” नीरज पाठक के रोंगटे खड़े हो गए जब उन्होंने सुना कि एक युद्ध के दौरान साथी सिपाही को बचाते हुए मधुसूदन सुर्वे को 11 गोलियां लगी । उनका पैर बुरी तरह से जख्मी हो गया था। और उन्होंने अपने बाएं पैर के अवशेषों को घुटने तक काट दिया।

अस्पताल से पूर्व-विच्छेदन सर्जरी के दौरान भी अपनी पत्नी को फोन करके कहा कि वह फुटबॉल खेलते समय घायल हो गए थे और उनके आस-पास के लोगों के अलावा कोई भी भाप नहीं सकता था कि वो मौत के मुँह से बचकर आ गए।

इस बायोपिक के लिए बॉलीवुड के किसी बड़े अभिनेता को करेंगे कास्ट !

डायरेक्टर नीरज पाठक ने इस बायोपिक के बारे में बताया कि,” मैंने पैरा कमांडो मधुसूदन सुर्वे जी की बायोपिक बनाने के राइट खरीद लिए है और रिसर्च वर्क शुरू करनेवाले हैं। मधुसूदन सुर्वे जी हमारे बीच है, जिनके जरिये हमे उनके बारें में रिसर्च वर्क करने में आसानी होगी। फ़िल्म बहुत ही जल्द  फ्लोर पर जाएगी और हम बॉलीवुड के किसी ‘ए’ लिस्टर से बात करेंगे, जिन्होंने आजतक कोई भी कमांडो ऑफिसर का रोल नही निभाया या बायोपिक नही की हैं,इसके अलावा अगले साथ तक हम फिल्म को रिलीज करेंगे”। इसके आगे नीरज पाठक कहते हैं,”युद्ध में केवल विजेता होते हैं, कोई उपविजेता नहीं। एक सैनिक या तो तिरंगा फहराता है या उसमें लिपटा हुआ वापस आता है। मधुसूदन सुर्वे की बहादुरी विस्मयकारी है, यही कारण है कि मैंने उनकी बायोपिक के अधिकार लिए।”

पैरा कंमाडो मधुसूदन सुर्वे की लड़ाईया और अमरगाथा!

मधुसूदन सुर्वे एक पूर्व पैराकमांडो है और एक घातक सैनिक है जिसे दुश्मन की रेखाओं के पीछे काम करने और दुश्मन के बचाव को विफल करने के लिए चुना गया है।  उन्हें दुश्मन की रेखाओं के पीछे गहरी पैठ और सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से महत्वपूर्ण दुश्मन बुनियादी ढांचे और संचार के खुफिया सुधार, तोड़फोड़ और तोड़फोड़ करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था।

कोकण के रत्नागिरी, खेड़ डिस्ट्रिक्ट के शिवतर गाँव के रहनेवाले पैरा कमांडो मधुसूदन सुर्वे के
सैनिकों के गांव से आते हैं। वह असम में ऑपरेशन राइनो, जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन रक्षक, कारगिल में ऑपरेशन विजय, नागालैंड में ऑपरेशन ऑर्किड और मणिपुर में ऑपरेशन हिफाजत पर ड्यूटी पर रहे हैं, जहां उन्होंने और उनकी टीम ने एक अंग खोने और लगभग घातक रूप से घायल होने के बावजूद 32 से अधिक आतंकवादियों का सफाया कर दिया।  वह कांगो, दक्षिण अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा निगरानी मिशन पर भी थे।  उनके परिवार की अगली पीढ़ी भी देश की सेवा के लिए काम कर रही है।  उनका बेटा एनडीए की तैयारी कर रहा है और बेटी मेडिकल क्षेत्र में काम कर रही है।मधुसूदन सुर्वे को 2005 में मणिपुर में नक्सलियों के खिलाफ असाधारण लड़ाई के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था, और इस घटना के बाद उन्होंने छह साल की सेवा की और 2011 में सक्रिय ड्यूटी से सेवानिवृत्त हुए।

मधुसूधन सुर्वे के गाँव शिवतर की शौर्य कहानी!

रत्नागिरी के खेड़ तालुका के शिवतर गांव को सैनिकों के गांव के रूप में जाना जाता है।  इस गांव के हर घर से भारतीय सेना में शामिल होने की परंपरा आज भी जारी है। प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों में 18 बहादुर सैनिक इस गांव के बेटे थे, और अधिकांश निवासी अभी भी सेना में सेवारत हैं।  गाँव के हाई स्कूल में महाराष्ट्र के वीर किलों के नाम पर कक्षाएं हैं। वास्तव में, कमांडो सुर्वे के परिवार की कई पीढियां सेना में रही हैं।  वहां के ग्रामीण निवासी गर्व से कहते हैं कि उन्हें स्कूली दिनों से ही भारतीय सेना में शामिल होने का अवसर मिलता है। वहाँ पर देश के लिए लड़ने के लिए  और शारीरिक बल को मजबूत करने के लिए फिटनेस क्लब हैं। इस गाँव में  सेना ही नहीं, गांव की युवा पीढ़ी भी पुलिस बल और चिकित्सा के क्षेत्र में देश की सेवा कर रही हैं।जन गण मन खेड़ के छत्रपति संभाजी राजे सैनिक स्कूल में हर कक्षा में गूंजता है, जहां आज, युवा लड़के शिवतर गांव के शहीद पुत्रों के सम्मान में शहीद स्तम्भ की ओर मार्च पास्ट करते हैं।

ब्रिटिश सरकार ने शिवतर में शहीद सैनिकों का एक वीर स्मारक बनवाया !

तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने देश के लिए उनके योगदान को याद करने के लिए शिवतर में शहीद सैनिकों का एक वीर स्मारक बनवाया, उनकी वीरता और दिलेरी को नीरज पाठक सलाम करते हैं।

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